रविवार, 6 मार्च 2016

मुम्बई लोकल की औरते



मुम्बई लोकल की औरते            

वह लडकी
जो दरवाजे के पास खडी कान में इयर फ़ोन लगा
सुन रही है गाना और चिप्स भी खा रही है,
अगला स्टेशन आते जबरन आ जाएगी गेट पर
और हवा में इस तरह लहराएगा उसका आंचल
कि शरमाऎगे मेघ भी

उधर फ़ोन पर
हाफ़ पैट पहने अपने प्रेमी से बात कर रही है एक
कि चालीस मिनट बाद अंधेरी पहुच जाएगी
वहीं पर आगे वाले
सिग्नल के नीचे करे इंतजार

बीच में खडी एक
बता रही है एक कि पति की कमाई
ठीक ठाक है ,बच्चे भी कमा रहे है अच्छा खासा
मगर क्या करूं घर में बैठ्कर इसलिए
नौकरी कर ली स्कूल की
बच्चो के साथ बहल जाता है दिन

ये मुम्बई लोकल की औरते है
तेज चलती है,तेज बोलती है
दौड कर पकडती है ट्रेन
धक्का देकर चढती है, और गेट पर खडी
आती हुई ट्रेन के दरवाजो पर खडे लडको का
उडा देती है मजाक, तीन लोगों से प्यार कर
ठोक बजा कर करती है शादी


ये मुम्बई लोकल की औरते है
कम नहीं खाती, गम नहीं खाती, गुस्सा आया
तो कर देती है नाक में दम, नहीं करती
छोटे छोटे फ़ैसलो के लिए पति का इंतजार
मन न हो खाना बनाने का तो बहाना नही बनाती
साफ़ कह देती है
पति से आज खाना लेकर आना

इन्हे देखकर
कई बार सोचती है मुम्बई की लोकल
कि काश होते उसके भी डैने , पटरी की जगह
होता उसका आसमान और वह उडती हुई
मुम्बई की इन लडकियो को ले जाकर छिडक देती
बीज की तरह
गांव गांव शहर शहर पूरे देश मे
खत्म हो जाती औरतो की याचना
स्वतंत्रता
समानता की

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