मैं भूल नहीं सकता
मैं भूल नहीं सकता
उन निगाहों को
इस जन्म के पार
अगले कई कई जन्मों तक
बला की खूबसूरत
पहाडी नदी सी बदहवास
उमर महज बीस या बाईस
साल
भागती जाने कहां से आई..जाने क्या देखा
और रूक गई मेरे पास
जरा भी नहीं किया
इन्तजार
जरा भी नहीं किया
परवाह
आंचल में लगाया हाथ और
दुनिया की सबसे
खूबसूरत मां का थन
अपना स्तन निकाल कहने
लगी
मेरा दूध पी लो
मुझे दूध बहुत होता है
जहां मैं खडा था
अस्पताल के ठीक बाहर
का चौराहा था
मरीजों से मिलने का
वक्त था..लोग अधिक न थे
तो कम भी नहीं थे..सारी दुकानें खुली थी
ऒर उसे किसी की परवाह
हीं नहीं थी
मुझे संशय में देख
तमतमा गई
जल्दी करो..
मेरी छाती फ़ट रही है..
जरा और देर हुई तो
जड दिया तमाचा..
लगा बच्चे की तरह खींच
कर मुंह में डाल देगी
तभी अस्पताल के गेट से दो लोग निकले..
एक जो उसका पति था..
समझा कर ले जाने लगा..तब भी उसकी आंखें
मुझ पर हीं गडी थी. रो रोकर कह रही थी
सुनो..
मेरा दूध पी लो..
मुझे दूध बहुत होता है
मैंने देखा..उसका आंचल दूध से भींग गया था
चली गई तो कहने लगा
उसके पति के साथ आया
दूसरा
माफ़ी चाहता हूं भाई
साहब
ठीक नहीं है उसकी दिमागी हालत..दो दिन पहले
हुआ था बच्चा..इसी अस्पताल में..किसी ने चुरा लिया
अब तक नहीं मिला कोई
सुराग
जाते जाते
जिस तरह देखा था उसने
मुझे
मैं भूल नहीं सकता..उन निगाहों को
इस जन्म के पार..अगले कई कई जन्मों तक
एक माँ की ऐसी व्यथा कथा को एक कवि से बेहतर कौन जान सकता है | ? अत्यंत मर्मस्पर्शी और मन भिगोने वाला काव्य चित्र रच दिया आपने | एक माँ के लिए संतान से बढ़कर कुछ नहीं | और नवजात के लिए दूध और वेदना से फटती छाती की पीड़ा कौन समझ सकता है एक कवि के सिवा | वही जन्म के पार की दृष्टि को भांपने में सक्षम है | हृदयविदारक रचना आदरणीय | सादर आभर --
जवाब देंहटाएं