रविवार, 6 मार्च 2016

परसिटा माल



परसिटा माल

जाड मे हाड
कड कडा के आए है
नया साल मना के आए है

दादी ने दी बोरसी,
दादा ने दिया कौडा
चुल्हे का आंच लेकर खडी रही मां
उपर से लगाना पडा विजली का हीटर
कांप रहे है तब भी बबुआ बरमेसर
थर थर,
थर थर
ठंढी की महीन तान सुनकर आए है

मुंबई के लिए ठीक है
जहां साल में महज एक बार
रात अपनी ठंढी सांस छोडती है
या उन जगहो के लिए ठीक है
जिनका कोई मौसम नहीं
मगर इस ठेठ भोजपुरिया इलाके में
जहां मौसम आज भी बारह चक्कर लगाता है
और दिसम्बर के अंत मे तो
सांप की तरह फ़ुंफ़कार के कुहासा घेरता है,
मेघाड चूता है भकसावन राकस मौसम
यह गेहूं को पटाने का मौसम है
जरूरी काम छोड कर
नया साल मनाने
मोटर सायकिल से गए थे बबुआ
बक्सर में चरितर बन,खा पी के लौट आएगे।

विंद्याचल की बाटी
चरितरवन की लिट्टी नामी है
मगर अब लिट्टी के संग संग रम का
बन गया है प्रचलन, किसी दोकान में बैठिए
और कीजिए रस रंजन
कमासुत की रजाई में बोला मोबैल
रम बचा है रे किसी को भेज के मंगा ले
जा न माई
अरे घर में पीएगा
अरे माई
कहा तो आंख भर आई
इ ठंढ बोरसी से नहीं जाएगा
कउडा से चुल्हा से नही
स्वेटर और रजाई से नही
इ ठंढ रम से जाएगी री मांइ
दू धूंट मारेंगे और सुत जाऎंगे
जा रही है माई,
खोख रहे है दरवज्जे पर दादा
कहां चली एतना रात में,
बबुआ के
कपार में बडा भारी दरद हो गया
परसिटा माल लाने जा रही हूं

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