रविवार, 6 मार्च 2016

तीली



तीली

 

दो उंगलियों के बीच

जब फंस गई विज्ञान की लाड़ली ,

                   मुस्काई

चलो खत्म हुआ-

अब जाकर खत्म हुआ इंतजार

 

दौड़ गई

रगों में संचित आग ,

सूख कर तत्पर खड़ी लकड़ी ने

अपनेपन की आंच पर गरम हो

जरा अकडकर कहा

सुस्वागतम्...

 

मन्दिर में

किसी देवता के सामने जलेगी

इस तरह फ़ुर्र से जैसे

उड्ती है चिडिया

 

किसी चुल्हे के बर्नर से मुंह सटाएगी

जहां बसता है जीवन का स्वाद

बतिआएगी ,

किसी दीप की शिखा से

 

कोई बच्चा पटाखा छोड़ दे

तो क्या कहना

एक क्षण की मुस्कान

जन्म सफल हो जायेगा तीली का

 

और अगर खेाटी भी हुई उसकी किस्मत

तो जला लेगा कोई सिगरेट

 

विज्ञान की

इस नकचढी लाड़ली ने तो सोचा भी नहीं था

कि घिग्घी..घिग्घी बंध जाएगी उसकी

किरासन के ढेर पर फिसलेंगे

उसके पांव

और देखते देखते

राख में तबदील हो जाएगी एक औरत ।

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