रविवार, 6 मार्च 2016

ठेकुआ



ठेकुआ

 

भाभी ने घी से मोम किया

और सान दिया आटा

 

कडाहीं चढाया

चुल्हे पर

डाला जो पहला चकवा

टोले में पसर गयी असली घी

और चीनी के पकने की खु्शबू

 

जाने कहां से दौडी आयी मम्मी

देखा यह नाश तो फट पडी

हो गयी अगियाबैताल

एक करम नहीं छोडा भाभी का

 

मम्मी की इतनी तेज थी आवाज

इतना तेज था गुस्सा

जैसे घर में समा गया हो भूचाल

 

भाभी ने कुछ कहा हीं नहीं

कातर निगाहों से देखा देवर को

जैसे पूछ रही हो

अपनी गलती

सजा झेल लेने के बाद

 

ठेकुआ बनाने के लिये देवर ने हीं कहा था

वो खुद हीं आ गया था सुनकर

घर में कुहराम..गुस्से में उलट दिया

कठौता, कुर्ता पहना और चला गया

 

मम्मी को भी कहां पता था कि

बेटे ने कहा है

उसे तो लगा कि करमजली

लंबी और चटोर है जिसकी जीभ

तय करके नहीं दिया जिसके बाप ने बैल

ठेकुआ बना रही है

 

कमबख्त

बस इतना बता देती कि देवर जी ने कहा है

तो कौन सी बडी चीज है

ठेकुआ

 

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ठेकुआ-- बिहार का एक ग्रामीण व्यंजन

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