शबरी के पिता
पिता के आने की खबर सुन
कुछ नहीं कह पाई
शबरी
और आंख भर आई
लोटा में पानी ले आई..
मल मल धोया गिलास
पीतल के थाल में धोएगी पांव..उतार देगी
छ्ह कोस पैदल की थकान..यह क्या कम है कि
इस उम्र में चल कर आए पिता
जूते की आहट से जान लेती थी शबरी
कि पिता आ रहे हैं..
आज भी जान लेगी कि पार
कर गए है घर का चौखट
बरामदा
इस घर में है उनकी बेटी
परदे पर कढे फ़ूल से समझ जाएंगे
देर हुई तो थाल में पानी बदल दिया
ग्लास में लगी थी
मिट्टी जरा सी कहीं
मल मल साफ़ किया
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