पपीता
दूध के दरख्त पर
टंगे
कच्चे ऒर अधपके पपीतों
के बीच
अकेली पकी हो तुम
रूग्णता नहीं है
तुम्हारे चेहरे पर
अतिरक्तिम छाया से बच
कर निकला
रंग है तुम्हारा
तुम्हारे भीतर छिपी है
मैदानी इलाके की सोंधी
गंध
रूको
अनुमान करने दो मुझे
कि कैसी रही होगी तुम
पकने के पहले
और कैसी हो जाऒगी पकने
के बाद
कमाल है कि तुम
कहीं नहीं दिखी कच्च
हरी या पिल पिल
क्या खूब पकी हो तुम
तुम्हारे स्वाद में है
धरती की अघाई हुई डकार
तुम्हारे स्पर्श पर
टिका है असाध्य रोगों का प्रतिकार
उन विचारों की त्वचा
हो तुम
जिनके कारण गोल है
पृथ्वी
रूको
देख लेने दो तुम्हारे
पके होने का हर एक पल
गंध ऒर मिठास में घुल
जाने दो
काला बीज बन उतर जाने
दो
ऒ मेरी पृथ्वी
जरा धीरज धरो
तुम्हारे पपीते के
भीतर पपीता होकर
जन्म ले सकूं
बस इतना समय दो
पपीते के पत्ते पंख
हैं मेरे
मेरी आत्मा का रंग है
पपीता के पकने का रंग
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