फ़ूल बेचने वाली लडकी
लोकल के डब्बे मे
हाथ में गुलाब के फ़ूलो का गुच्छा
लिए
बीस साल की एक लडकी आई
मुस्कराई और कहा,
फ़ूल ले लो बाबूजी
नहीं चाहिए
कह कर मै देखने लगा खिडकी के
बाहर
उस ओर जिधर चर्चा थी,वाल मार्ट
खुलने की
फ़ूल ले लो बाबूजी
आपकी तरह सुन्दर है, सुगन्ध भी
है इसमे
चाहे तो देख लिजिए आप सूंघकर,रोज
पच्चीस का
बेचती हूं आप बीस ही देना
मेरा चेहरे पर आए भाव देख खुद ही
पन्द्रह पर आ गई
एक बार कहा ना
मुझे नही चाहिए ये गुलाब
पूरी ताकत से इनकार कर मै देखने
लगा
उस १८००० वर्ग फ़ीट जमीन के टुकडे
को
जिसे सरकार ने आरक्षित किया था
वाल मार्ट के नाम
जिस पर बहस चली थी विधान सभा मे
टैक्स माफ़ करने पर मचा था घमासान
विपक्ष बिक गया था
फ़ूल बेचने वाली लडकी
अब मेरे सामने वाले यात्री से कह
रही थी
मेरा यकीन कीजिए आपकी बीबी को
बहुत अच्छा लगेगा,
प्लीज, ले लीजिए बाबूजी ये गुलाब
और ना कह दिया उसने भी
मेरी ओर मुडी
रूंआसा मुंह बना कहने लगी गिड
गिडाकर
सुवह से कुछ नही खाया बाबूजी ,इसे
लेकर दे दीजिए बस एक
वडा पाव का दाम,थर थर कौंध गई
भीतर
पैसा निकालने के लिए मैने जेब
में लगाया हाथ
कि पकड लिया बगल में बैठे दोस्त
ने कहने लगा
किस चक्कर में पडे हो यार,
रोज आती है बारह बजे के बाद ऎसे बेचती है
सामान जैसे भीख मांग रही हो
मुम्बई की लोकल में वाल मार्ट के
सामने
फ़ूल का बाजार दिखा रही है फ़ूल
बेचने वाली लडकी
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