औरतें
रविवार, 6 मार्च 2016
तुम
तुम
चूल्हा
फूंकते
झूकी
हुई
पीठ
हो
तुम
गोयठे
की
मद्धिम
ऑच
पर
रात
को
रोटियों
सी
गोल
करती
तुम
सघन
वृक्ष
की
टहनी
विनम्र
नदी
की
गरम
सॉस
हो
तुम
पहाड़ी
रातों
सी
यातना
के
बाद
नींद
की
खुशी
हो
तुम
...
।
1 टिप्पणी:
रेणु
15 अप्रैल 2018 को 10:20 am बजे
क्या बात है !!!!!!!!!!! अति सुंदर भावपूर्ण पंक्तियाँ आदरणीय |
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क्या बात है !!!!!!!!!!! अति सुंदर भावपूर्ण पंक्तियाँ आदरणीय |
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