रामकली
पढी लिखी मैट्रिक पास
तब भी गउ थी रामकली
सिर उठाकर नहीं चलती
मुंह उठाकर नहीं बोलती
गुस्सा आता
तो रहती चुप
उसके आंगन में काई नहीं लगा कभी
शीशे की तरह चमकता है माटी का घर
गंध से अनुमान लगा लेती स्वाद का
कभी कम या ज्यादा नहीं हुआ
रसोई में नमक
जागती तो पांव छू लेती
सोने जाती तो पूछ लेती सास से
सबने कहा ,दस घर दुश्मन को भी बहू मिले
ऎसी ही, घर लक्ष्मी
हाय राम,लीप पोत दिया अपना सारा गुन
नाक कटवा दिया गांव में ससुर का
पति ने मना किया नही मानी
अकेले निकली
और डाल कर आई अपना बोट
इस गांव में
जहां कभी बोट नहीं डाला औरतो ने
यह तो गजब कर दिया रामकली ने
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें