रविवार, 6 मार्च 2016

ताजमहल



ताजमहल


किसी का प्यार पुण्य है
किसी का प्यार पाप

खडा हूं
महर्षि अंगिरा के तपोवन
महाभारत के अग्रवन में यमुना के तट पर
मोहब्बत का प्रतीक बन चुका ताज महल
आंखों के सामने है और आंखों से दूर
यमुना की दो पाटों के बीच
घने कुहरे मॆं
जाने कितनी सदियां

जहां यमुना की कल कल
और पंछी के कलरव से
अंगिरा
बृहस्पति और शुक्र को ज्ञान देते थे,
जहां कदम्ब की डाल पर बैठ
मुरली बजाते थे अपने किसन कन्हैया,
और सम्मोहित गोपियो के संग
नाचती गाती आती थी बेडने,

गोटेदार चोली,
घाघरा
ओढनी
कदम्ब के तने के रंग की ,
बरगद के बरोह से लंबे केश,
केशों के बीच तमगे सा चौडा मांग टीका
सिर पर
कतार में बंदनवार की तरह जडे
तांबे के सिक्के
माथे पर गहरी लाल बिन्दी,
नाक में सोलह बूंदो की पीतल की नथिया
कान मे पंखुडियो के खिले फ़ूल
गले में
चांदी की हंसुली और गुरिया का माला
हाथ में कडा-चूडा, कमर मे करधनी पैरो मे कडा बिछिया

सब कहते
गहने तो बेडनो के लिए बने है
बेडने गहनों के लिए

सुवह के
सिन्दूरी आसमान की तरह
चौडे ललाट के नीचे हिरण की
छलांग सी भौहे

भौहों के नीचे
चांद की गोद बैठे खरगोश सी,
नन्दन वन के बेर सी
कजरारी और मदभरी आंखे

सुग्गे के ठोर सी
उनकी नाक 

और वो रसीले
लाल लाल होठ
जिन्हे देख आम पेड पर फ़ट जाते थे।

कोमल कपोल
जैसे पुरईन के पात पर
छूट गई हो चातक की
प्यास

सुराही दार गर्दन के
ठीक उपर ठुढी के पास
बुरी नजरो से बचाने के लिए लगा
काला बूंदी दार गोदना

बाल्मिकी के आश्रम में परित्यक्त सीता ने
जब जन्म दिया लव कुश को,रंग पंचमी का दिन था,
पहली बार बेडने नाची थी

सीता जमीन में समा गई
गाया गीत
घर की मालिक लडकी होगी
दुल्हा जमाई होगा,बडी बहन शादी नही करेगी

बाल्मिकी
तुलसी
अचंभित,
लोक कला की सरस्वती बन थी चुकी थी
तुलसी ने उस बेडन के हाथ का पिया पानी
जो तानसेन की उस्ताद थी

नहीं मिली
बखान की कोई उपमा
तो कहा बेडने बेडनो की तरह सुन्दर है
जो काम आई सीता के

किसी का जन्म हो,
किसी की शादी हो
प्यार और आनन्द का कोई भी पैमाना
बुंदेल खंड में
बिना बेडन के छलकता नही था

ताज महल का उत्सव था
बेडनो ने हिला दिया बगदाद
हिल गया बुखारा टर्की और समर कंद..
बगदाद का कारीगर
पत्थर पर घुमावदार अक्षरों को तराश सकता था
एक बेडिन की आंखो में संदेश का घुमाव
चुनौती बन गई

बुखारा का कारीगर संगमरमर पर फूल तराशता था
बेडिन के खिले चेहरे ने हाथ रोक दिए

गुम्बदो का निर्माण करने में दक्ष कारीगर
तुर्की के इस्तम्बुल का था
बेडन औरतो के
स्तन पर बाहर से पडी नजर तो अब तक रचे
गुम्बद नक्काशी में छोटे हो चुके थे
समरकंद के शिल्पी ने देखा
बेडनो का जंघा
मिनारों के निर्माण के लिए

कीमती पत्थर
रत्नो की चमक
बेडनों के आगे फ़ीकी पड गई

मुख्य शिल्पी ने बादशाह से कहा
इनके बिना नहीं बन सकता
महलो का ताज
कला तो बेडनो में है महाराज
रत्न तो बेडने है

आदेश खुर्र्म का
पत्थर की खदानों में
जितने मज़दूर लगाए, उससे अधिक लगाए
बेडनों के गांव मे,
उनके कसाव,
उनकी भंगिमा अंग प्रत्यंग
नोच नोच चिपका दिया ताज महल से,
आगरा के इतिहासविद कहते है
बेडने जिस्मफरोश हो गई

सोचता हूं
किसके प्यार का पुण्य है ताजमहल
किसके प्यार का पाप।

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