रविवार, 6 मार्च 2016

सरस्वती वंदना


सरस्वती वंदना

आप वंदन तिथि है
माता सरस्वती
जो आती है साल में एक बार
सब करते है आपको  प्रणाम

मैं आपको नदी की तरह देख रहा हूं
सरस्वती नदी
जिसके तट पर पृथ्वी पर
मनुष्य की संस्कृति का मिला सम्मान
शब्दों का जन्म हुआ
विकसित हुआ जीवन का व्याकरण

मैं आपके गुस्से को जानता हूं माते
उस आत्महंता प्रलयंकारी कहर को कौन नहीं जानता
कौन नहीं जानता, लुप्त हो गई तू माते
पर ऎसा गुस्सा किस काम का

कारण जरूर कुछ बडा होगा
तभी कथाए बनी तो
बेटी बन गई ब्रहमा की

कलाएं बनी तो कला की देवी बनी
राग बने तो रागो की देवी बनी
कितना प्यार था तुम्हारे भीतर


और हासिल
बाप और बेटी के रिश्तो को अपमानित किया गया
कलंकित  किया गया, मां और बेटे का एक सा हाल,
समझा रहा हूं आपको
खुद नहीं समझ पा रहा हूं


आप  तिथि है माता सरस्वती
बरसी के दिन सा आपका दिन
होगा औरों के लिए
मैं तो रोज धोता हूं  कलंक
नकली कथा घोषित करता हूं कथाओ को
खारिज करता हूं वे सारे पुराण, जिन्हे तुम्हारे
कलंक ने पठनीय बनाया

उन्हे क्या पता माते
एक लुप्त नदी
क्यों औरत में बदल जाती है

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