सरस्वती
वंदना
आप वंदन
तिथि है
माता सरस्वती
जो आती है साल में एक बार
जो आती है साल में एक बार
सब करते है आपको प्रणाम
मैं आपको नदी की तरह देख रहा हूं
सरस्वती नदी
जिसके तट पर पृथ्वी पर
जिसके तट पर पृथ्वी पर
मनुष्य की
संस्कृति का मिला सम्मान
शब्दों का जन्म हुआ
विकसित हुआ जीवन
का व्याकरण
मैं आपके गुस्से को जानता हूं माते
उस आत्महंता प्रलयंकारी कहर को कौन नहीं जानता
कौन नहीं जानता, लुप्त हो गई तू माते
उस आत्महंता प्रलयंकारी कहर को कौन नहीं जानता
कौन नहीं जानता, लुप्त हो गई तू माते
पर ऎसा गुस्सा किस काम का
कारण जरूर कुछ
बडा होगा
तभी कथाए बनी तो
तभी कथाए बनी तो
बेटी बन गई ब्रहमा की
कलाएं बनी तो कला की देवी बनी
राग बने तो रागो
की देवी बनी
कितना प्यार था
तुम्हारे भीतर
और हासिल
बाप और बेटी के
रिश्तो को अपमानित किया गया
कलंकित किया गया, मां और बेटे का एक सा हाल,
समझा रहा हूं आपको
खुद नहीं समझ पा रहा हूं
खुद नहीं समझ पा रहा हूं
आप तिथि है
माता सरस्वती
बरसी के दिन सा आपका दिन
बरसी के दिन सा आपका दिन
होगा औरों के लिए
मैं तो रोज धोता हूं कलंक
नकली कथा घोषित करता हूं कथाओ को
खारिज करता हूं वे सारे पुराण, जिन्हे तुम्हारे
खारिज करता हूं वे सारे पुराण, जिन्हे तुम्हारे
कलंक ने पठनीय
बनाया
उन्हे क्या पता माते
एक लुप्त नदी
एक लुप्त नदी
क्यों औरत में बदल जाती है।
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