सतुआन
एक
चुटकी सत्तू
जीभ
पर आई ,
तैर
गया साग से भूंजा तक
सब
एक साथ ,भर आया मन
जैसे
गंगा का जल
जैसे
मां के हाथ की पकी खीर
जैसे
जेठ की तपिस के बीच
होरहे
का साथ.तन गया मन
जैसे
मन को हिलोर रही हो
कोई
लोक धुन,जैसे कोई
उमंगो से भरा पर्व
धर्मेंद्र
की बीबी ने
मुंबई
के एक छोटे से घर के
और
छोटे से किचन में जाने कब से
पुडिया
मे बांध कर रखा था यह
सत्तू
आज
सतुआन है भैया,अन्न
और मनुष्य के रिश्ते का पर्व
कंठ
में जाना चाहिए
जाने
कितने रिश्ते और जाने कितने पर्व
चुटकी
चुटकी भर कहां बचे है
एक
चुटकी सत्तू
जीभ
पर आया , मगन हुआ मन
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 14 अप्रैल 2018 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंवाह !! आदरणीय -- सतुआन की महिमा को आज बखूबी जाना | हमारे यहाँ इसे सत्तू कहा जाता है और सतुआ तीज नाम से एक त्यौहार भी मनाया जाता है | ये मेरे मायके गाँव में मनाया जाता था लेकिन शहर में विवाहोपरांत तो मैंने इसका नाम भी नहीं सुना | हमारी माँ रात भर भीगे गेहूं सुखाकर भुनकर, पीसकर इसे बनाती थी | मैंने भी कभी इस बारे में दुबारा पूछने की कोशिश नहीं की | पर आदरणीय पञ्च लिंकों ने खूब याद दिलाया | अब पूछना पड़ेगा | मधुर और हृदयस्पर्शी रचना के लिए आभार आदरणीय | सचमुच प्रदेश में चुटकी भर सतुआन सब याद दिला सकता है | पुनः आभार और नमन |
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