रविवार, 6 मार्च 2016

नीले रंग की बिन्दी



नीले रंग की बिन्दी

बडे दिनो के बाद दिखा
अंधेरी मे खाली डब्बा,
चढा तो मिल गई विन्डो सीट बैठा पसर कर,
नौकरी मिल जाती है मुम्बई मे
नही मिलती लोकल में विन्डो सीट

आज चेहरे से जी भर टकराएगी समुद्र की हवा
आंखो को मिलेगा सुख नजारो का
कि अचानक नजर टिक गई,
विन्डो के ठीक नीचे
आराम से चिपकी थी नीले रंग की बिन्दी

किसकी बिन्दी है यह
जरूर कोई औरत बैठी होगी इस सीट पर मुझसे पहले,
इतनी कोमल कि ललाट को देने के लिए थोडा विश्राम
चिपका दिया हो यहां दीवार पर
और भूल गई हो जाते समय

यह भी तो हो सकता है साथ बैठा हो
उसका पति ,सामने उतार कर चिपकाया हो
और छोडा भी हो जान बूझ कर जताने के लिए
अपना गुस्सा
तेरे साथ अब बिना बिन्दी के रहना है

हो सकता है बिन्दी के कारण
लग रही हो बहुत खूबसूरत और घूर रहे हो
आस पास बैठे और खडे लोग, पछता रही हो
कि क्यो आ गई मर्दो वाले लोकल के डब्बे मे
और खीज कर  चिपका दिया हो
लोकल की दीवार पर ,लो जी भर देखो

चलती रही लोकल
उडान भरता रहा औरतो का सौन्दर्य
उनकी खुशिया उनके दुख ,
उसका रंग,
उसका रूप
जाने कितने ललाटो पर चिपकाया मैने
आंखो के नाचते रहे जाने कितने चेहरे
कि आ गया मेरा स्टेशन

एक बार मन हुआ निकाल लू इसे
और ले चलू साथ,
दूसरे पल ख्याल आया तो छोड दिया यूं ही

क्या पता लोकल को देखकर
याद आया हो उसे अपना जीवन और देकर
बिन्दी का उपहार,कायम किया हो बहनापा
कहा हो-
यह बिन्दी तुम पर जंचती है

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