रविवार, 6 मार्च 2016

संकल्प जल



संकल्प जल

 

मुझे फ़ुसला लेना चाहती है

एक नन्ही सी नदी

 

अपने तटों से अनजान

अपनी धारा से बेखबर

बहा ले जाना चाहती है मुझे

एक ऎसे समुद्र की ओर

जिसका पता उसे खुद नहीं मालूम

 

मुझसे मांग लेती है

मेंरे तिनके

मेरे पत्थर बहा देने का दम भरती है

 

मेरे पांवों में लपेट देती है अपनी धार

अपने सम्मोहन के फ़ीते

काश कि मैं इतना हल्का
इतना हल्का हो जाता
कि कागज की नाव सा छोड देता खुद को
काश कि आम के पवित्र पल्लव की तरह
छू लेता उसके संकल्प का जल

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