संकल्प जल
मुझे फ़ुसला लेना चाहती है
एक नन्ही सी नदी
अपने तटों से अनजान
अपनी धारा से बेखबर
बहा ले जाना चाहती है मुझे
एक ऎसे समुद्र की ओर
जिसका पता उसे खुद नहीं मालूम
मुझसे मांग लेती है
मेंरे तिनके
मेरे पत्थर बहा देने का दम भरती है
मेरे पांवों में लपेट देती है अपनी धार
अपने सम्मोहन के फ़ीते
काश कि मैं इतना हल्का
इतना हल्का हो जाता
कि कागज की नाव सा छोड
देता खुद को
काश कि आम के पवित्र
पल्लव की तरह
छू लेता उसके संकल्प
का जल
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