कुमाता
गर्भ के अंधेरे में
उलट पुलट खेलते
ओ मेरे
अजन्मे लाल...
फर्श पर लोटेंगे मेंरे
केश
कट कटाएगे दांत
पसीने से लस्स होगा
जिस्म
कानों तक रोने की आवाज
आएगी
और चले जाओगे तुम..मुझसे दूर
बहुत दूर
ओ मेरे रक्त
मेरी सांस..
किसी और के आंगन में
सजेगा तेरा पालना
कोई और लगाएगा तुम्हे
काजल का डिठौना
कोई और तेरे बदलेगा
कपड़े
लेगा बलैया....
सुनेगा तुतले बोल
ओ मेरे आंचल के दूध...
ओ मेरी आंखों के जल
मुझे
कभी यह बताया नहीं
जाएगा
कि कहां हो तुम..किस देश.. किस प्रांत
किस शहर में...किसके पास और तुम्हे तो
कभी हवा भी नहीं लगने
दी जाएगी
मेरे मातृत्व की
ऒ मेरे चाय की चीनी
ऒ मेरे दाल के नमक
बच्चे को
जन्म देकर पूरी होती
है औरत
पाल कर पूरी होती
है मां
और बेंच देने के बाद
शापित हो जाती है धरती..
गर्भ के अंधेरे में
उलट पुलट खेलते
ओ मेरे
अजन्मे लाल...
तुम्हारे जाने के बाद
मशीनें
हुमक कर मुंह लगाएंगी
मेरे सीने में..
और बिकेगा जब तेरे
हिस्से का दूध..
तेरी याद बहुत आएगी
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