रविवार, 6 मार्च 2016

पांच सेकेन्ड



पांच सेकेन्ड

पांच सेकेन्ड का वह समय
पांच जन्मों से अधिक सुखद था मेरे लिए

खडा था नायगांव स्टेशन पर
लोकल आई
महिला स्पेशल थी
अगली का करना होगा इंतजार
सोचकर खडा था कि पुकारा किसी ने
मुड के देखा-अरे गार्ड साहब आप

अगला स्टेशन भायन्दर
दस सेकेन्ड रूकी ,
चली तो पांच सेकेन्ड लगा
प्लेटफ़ार्म पार करने में

क्या बताउं ,
कैसे बयान करुं भाई
उस पांच सेकेन्ड के बारे में

जैसे दुनिया के
सबसे खूबसूरत और सुगन्धित
अभी अभी खिले, ओस कण भरे
तरह तरह के फ़ूलों से खचाखच भरे
चन्दन वन की मेड पर निकला हूं टहलने

हर पांच मिनट बाद नया स्टेशन
और हर स्टेशन पर वहीं
पांच सेकेन्ड
आह जैसे
आसमान में सितारो के बगीचे की मेड पर
सजा है मुंबई का यह परी बाजार

ठूस ठूस भरी
फ़ेफ़डो में सांस,आखों में चित्र,
नाक मॆ सुबास ,नौकरी हो तो गार्ड की
ट्रेन हो तो महिला स्पेशल
और समय हो तो सुवह का
क्यों गार्ड साहब ?

मुस्कराए गार्ड साहब
ब्यंग था निगाहो मे,

आज पूरे दिन
मेरी ड्यूटी है महिला स्पेशल पर
कवि जी,छ बजे शाम को भी आ जाईएगा जरा
चलेंगे साथ, देखिएगा टहनी से टूटकर देवो के सिर
चढने के बाद इन फ़ूलो का हाल
और ले जाईएगा कुछ अलग सुवास
कुछ अलग चित्र
असल जिन्दगी के भी

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