उधार
मैं नहीं जाऊंगा
दुकान पर , मुझे तो पहचानता भी नहीं
कमबख्त दुकानदार
जाऊंगा
और कहूंगा उधार दो
दो किलो चावल..एक किलो प्याज
पूछेगा कौन हैं आप , तो क्या कहूंगा
बिन पहचाने
कैसे कोई दे देगा
सामान
जाऊंगा और कहूंगा
कहूंगा कि दुकानदार
महोदय
वो जो मोटी-मोटी, नाटी-नाटी
और थुल-थुल सी औरत आती है , वो जो
ले जाती है अक्सर उधार
,
उन्ही का पति हूं मैं
वो घर में नहीं है आज
नहीं , मैं नहीं जाउंगा
उस दुकानदार के पास ,जाने क्या सोंचेगा
ना भी तो कह सकता है
कमबख्त , कोई सबूत नहीं
मेंरे पास कि मैं हीं
मरद हूं उनका
औरत बेवकूफ हो ,
तो ऐसा हीं होता है...समान रख के जाती तो
क्या बिगड जाता..अब किस मित्र का
खटखटाऊं दरवाजा
कहूं-उधार दो
पत्नी घर में नहीं है
आज
क्या करूं मैं
पत्नी घर में नहीं और
रूपए भी नहीं
और समान जरूरी -कहीं तो जाना हीं होगा
इस घर के लिए आज
अरे !
यह तो मैं सोच भी नहीं
सकता था कि
दुकानदार चलकर आएगा
मेरे घर , कहेगा -नमस्कार
वो जो आपकी मैडम हैं , बोल गई थीं कुछ सामान
रजिस्टर को भी देख लें , इसमें लिखा है
आपका हीं नाम....।
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